रविवार, 23 मई 2010

लेखक की पहचान



पहचान सको तो पहचान लो ,

लेखक को तुम आज जान लो।

रखता है अपने स्वछंद विचार,

करना नहीं पड़ता उसे प्रचार।

मन के भावों को आगे लाता है,

कल्पना को और सजीव बनाता है।

दुनिया की बातों को अपनी भाषा में दर्शाता है,

कष्टकारक बातों को बड़ी सफाई से छुपाता है।

पहचान सको तो पहचान लो ,
लेखक को तुम आज जान लो।


लेखन में हो ब्लॉग या हो कोई समाचार,

किसी की वाहवाही तो किसी पे अत्याचार।

किसी के कार्यों की हुई प्रशंसा,

तो किसी के कार्य हुए शब्दों के शिकार।

लेखन में लेखक धैर्य अपनाता है,

बात को अपनी सचित्र दर्शाता है।

किसी को ऊँचा उठाता है,

तो किसी को गढढे में गिराता है।

लेखन है लेखक की ऐसी कला,

मढ़ देता है दूसरों पे अपनी बला।

पहचान सको तो पहचान लो ,
लेखक को तुम आज जान लो।


अंततः ,


नाराज करो न लेखक को,

वरना मिजाज उसका बदल जायेगा।

अगर नाराज हो गया वह किसी पे,

तो लेखन में ही उसे निकल जायेगा।


बुधवार, 14 अप्रैल 2010

प्राकृतिक सौंदर्य


चलता ही जाता हूँ राह निहारे ,

चाहे हो पहाड़ या नदी के किनारे ।

सूरज की किरणे आसमां से आकर ,

छूती है तल को धरती में समाकर ।

लहलहाते पेड़ , खिलखिलाते फूल ,

रसपान करता भौंरा जाता सब भूल ।

चह-चहाते पच्छी , शोर मचाता सागर ,

बहती हवाएं कहती मुझसे आकर ।

की देखो ये प्रकृति के सुन्दर नज़ारे ,

खड़े है रास्ते में बांह पसारे ।

कैसी मोहक है ये प्राकृतिक सुन्दरता ,

जीवन में आनंद और लाये मधुरता ।

रोकता हूँ कलम इस सपने के साथ ,
कि प्रकृति को सवांरने में आगे बढेंगे हाथ ।