बुधवार, 14 अप्रैल 2010

प्राकृतिक सौंदर्य


चलता ही जाता हूँ राह निहारे ,

चाहे हो पहाड़ या नदी के किनारे ।

सूरज की किरणे आसमां से आकर ,

छूती है तल को धरती में समाकर ।

लहलहाते पेड़ , खिलखिलाते फूल ,

रसपान करता भौंरा जाता सब भूल ।

चह-चहाते पच्छी , शोर मचाता सागर ,

बहती हवाएं कहती मुझसे आकर ।

की देखो ये प्रकृति के सुन्दर नज़ारे ,

खड़े है रास्ते में बांह पसारे ।

कैसी मोहक है ये प्राकृतिक सुन्दरता ,

जीवन में आनंद और लाये मधुरता ।

रोकता हूँ कलम इस सपने के साथ ,
कि प्रकृति को सवांरने में आगे बढेंगे हाथ ।