
चलता ही जाता हूँ राह निहारे ,
चाहे हो पहाड़ या नदी के किनारे ।
सूरज की किरणे आसमां से आकर ,
छूती है तल को धरती में समाकर ।
लहलहाते पेड़ , खिलखिलाते फूल ,
रसपान करता भौंरा जाता सब भूल ।
चह-चहाते पच्छी , शोर मचाता सागर ,
बहती हवाएं कहती मुझसे आकर ।
की देखो ये प्रकृति के सुन्दर नज़ारे ,
खड़े है रास्ते में बांह पसारे ।
कैसी मोहक है ये प्राकृतिक सुन्दरता ,
जीवन में आनंद और लाये मधुरता ।
रोकता हूँ कलम इस सपने के साथ ,
कि प्रकृति को सवांरने में आगे बढेंगे हाथ ।
"रोकता हूँ कलम इस सपने के साथ,
जवाब देंहटाएंकि प्रकृति को सवांरने में आगे बढेंगे हाथ।"
समसामयिक एवं प्रेरक रचना - शुभकामनाएं
प्रेरक रचना - शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंरचना सराहनीय है.
जवाब देंहटाएंये सोच शब्द पर बिन्दी शायद भूलवश तो नहीं लग गई है?
acchi rachna
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत हैं.....बधाई स्वीकार करें.....हमारे ब्लॉग पर आकर अपने विचार प्रस्तुत करें.....|
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
जवाब देंहटाएंकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
atyant sunder.
जवाब देंहटाएंअच्छी अभिव्यक्ति है प्रकृति सच में हर मोड़ पर लुभाती है ।
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